एक दिन या पूरा एक जीवन?
समापन कड़ी
समय जैसे भाग रहा था, सौम्या अपने मन की एक एक गांठ खोलकर राजीव के सामने रखती रही और राजीव गौर से सब सुन रहा था। कोई सुझाव नहीं, कोई मशविरा नहीं फ़िलहाल सिर्फ़ सुन रहा था। बीच बीच में कभी सौम्या कहीं अटक जाती तो राजीव उसकी अनकही बात को पूरी करता और सौम्या हैरान हो रही थी कि कैसे एक ऐसा इंसान जिससे कोई रिश्ता नहीं, वो उसके मन की एक एक बात को समझता है, जानता है।
बात करते करते सौम्या एकदम चुप हो गई। राजीव भी देख रहा था, उसके चेहरे की तरफ़। कुछ देर के बाद राजीव ने घड़ी की तरफ़ देखा, गाड़ी के समय में लगभग दो घंटे बचे थे। आधा घंटा स्टेशन तक पहुंचने में, यानि डेढ़ घंटा और था उनके पास। राजीव ने उसे बुलाया, “एई सौम्या, कितना कुछ छुपा रखा है तुमने अपने मन में? सब कुछ बता दिया, एक बात नहीं कही। मेरे विचार में एक कमी है जो तुम्हें अंदर ही अंदर खा रही है। एक तुम्हारी वो कमी पूरी हो चुकी होती तो इन सब बातों को तुम शायद आराम से मैनेज कर लेती। अगर मैं गलत कहूँ तो वहीं टोक देना। तुमसे कोई रिश्ता नहीं, पता नहीं मुझे हक है ये सब पूछने का या कहने का, लेकिन तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ। तुम्हारी शादी को पांच छ साल हो चुके हैं, परिवार सीमित होने के पीछे कोई मैडिकल कारण है या प्लानिंग?” सौम्या का चेहरा झुक चुका था। राजीव उसे एकटक देखे जा रहा था। पानी की बोतल सौम्या को थमाते हुये राजीव ने कहा, “पानी पी लो, धूप है।” सौम्या ने बोतल पकड़ी, “सर, धूप है लेकिन बचने के लिये सायबान भी है। शुरू में कैरियर के चक्कर में हम सतर्क रहे, फ़िर बस्स यूं ही समय निकलता गया। कुछ मैडिकल कॉम्प्लिकेशंस भी रहे, वैसे तीन महीने में ये सैशन खत्म होने वाला है और उसके बाद मुझे लांग लीव पर जाना है, जाना ही पड़ेगा।” और सौम्या दूसरी तरफ़ देखने लगी। दिल से मनों भार उतर गया हो जैसे, और राजीव भी बिल्कुल ऐसा ही महसूस कर रहा था।
“अब तुम कुछ देर मेरी बात सुनो। जब तुम पूछ रही थी, मैं बात टाल देता था। अब तुम्हें खुद बताता हूँ। मैं खुद ऐसे दौर से गुजरा हूँ, लेकिन जब मुश्किल समय कट गया तो सब ठीक हो गया। शायद ये हालात इसीलिये आते हैं कि हम कुछ अनमोल चीजों की कद्र कर सकें। नहीं तो आसानी से जो हासिल हो जाये, हम लोग उसका महत्व नहीं समझते, समझ ही नहीं पाते।
हमारे पास बहुत कुछ होता है, लेकिन जो नहीं होता वो मालूम नहीं कैसे इस सब को ढंक लेता है। नतीजतन प्राप्त का सुख ठुकराकर हम अप्राप्य के दुख को सीने से लगाये फ़िरते हैं। जो शिकायतें तुम्हें अनुज और अनुज को तुमसे रही हैं, ऐसी या मिलती जुलती बहुत सी शिकायतें पति पत्नी को एक दूसरे से रहती होंगी। कुछ लोग समझदार होकर एडजस्ट कर लेते हैं, कुछ नहीं कर पाते। अपनी तरफ़ से पहल न करने के बावजूद सामने वाले के सामने किसी भी हाल में न झुकने की जिद के चलते दोनों एक दूसरे को, अपनी अपनी जिन्दगी को सलीब की तरह ढोते रहते हैं। बेहतर है कि ऐसे ही जीना सीख लिया जाये। कई बार तो समय गुजरने के साथ ऐसे हालात में पहुंच जाते हैं कि रिश्तों को सुधारने की, संवारने की, और तो और नये रिश्ते बनाने की कोई चाह, इच्छा बाकी ही नहीं रहती। ये सब तुमसे बताया है तो इसलिये कि पता नहीं क्यों तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता। हो सके तो तुम कोई ऐसी गलती मत करना कि परिवार में बिखराव हो। उम्र में बड़ा हूँ तुमसे, दिल से आशीर्वाद दे रहा हूँ कि हमेशा खुश रहो। कुछ समय बाद परिवार में नया सदस्य आयेगा, बहुत प्यार करना उसे। जब मुश्किल समय खत्म होगा, सब अच्छा ही अच्छा होगा। इंसान पहचानने की थोड़ी सी समझ है मुझमें, तुम कर सकती हो। चाहे परिवार हो या कैरियर, थोड़ा सा अधूरापन हमेशा रहेगा। उसे पूरा करने की कोशिश में जिन्दगी कट जाये, बहुत है।”
सौम्या की आंखें गीली देखकर राजीव हंसने लगा, “पगली लड़की, चलो समय हो गया है।”
गाड़ी आ चुकी थी। अपने कोच में चढ़कर सौम्या गेट में खड़े रहकर ही राजीव से बात कर रही थी। सिग्नल मिल गया, गाड़ी प्लेटफ़ार्म से रेंगने लगी। सौम्या ने राजीव से हाथ मिलाया और पूछा, “आप वापिस कब आ रहे हैं अपने शहर?” राजीव ने हँसकर जवाब दिया, “कभी नहीं सौम्या, कभी नहीं। मेरे रोडमैप में अब वापिस आने के नहीं, और दूर जाने के आसार हैं। खुश रहना, एक बार तुम्हारे घर काफ़ी पीने जरूर आऊँगा, पिलाओगी न?” ट्रेन स्पीड पकड़ चुकी थी, हाथ हिलाता राजीव दूर, और दूर दिख रहा था।
शायद सौम्या की आँख में कुछ गिर गया था, लाल हो रही थीं उसकी आँखें। कोई देखता तो सोचता शायद रोकर हटी है वो…..
उधर प्लेटफ़ार्म पर राजीव पूनम को फ़ोन कर रहा था, याद दिलाने के लिये कि अदालत ने उसे महीने में एक दिन बच्चों के साथ बिताने की इजाजत दे रखी है और कल सुबह आठ बजे वह बच्चों को लेने आ रहा है। ठीक आठ बजे बच्चे उसे फ़्लैट के गेट पर तैयार मिलने चाहियें। पूरा महीना जिन बारह घंटों की वो बाट देखता रहता है, उनमें से एक लम्हा भी इंतज़ार जैसी वहियात चीजों में जाया हो, अब नहीं चाहता। (समाप्त)
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एक दम शुरू में कहानी जैसा कुछ लिखने की कोशिश की थी, जब समापन कड़ी तक पहुंचा तो अनुराग शर्मा जी के ब्लॉग पर पहले से ही लिखी एक कहानी पढ़कर लगा कि अपनी लिखी चीज तो उसी प्लाट की चोरी लग रही है, वहीं ब्रेक लगा दिये। अपने नियमित पाठक भी उस समय तक संख्या में न के बराबर थे, अपूर्णता पर किसी का ध्यान भी नहीं गया। खुद अनुराग सर ने ये कहानी पूरी न करने पर टोका तो उनसे अपनी आशंका, अपना अपराधबोध बताया कि क्या उन्हें खुद ये नहीं लगा कि उनका प्लॉट चुराया है मैंने? खुद के उदाहरण देकर उन्होंने यही जताया कि उन्हें ऐसा नहीं लगा। अभयदान व आश्वासन पा लिया लेकिन स्मार्ट उस्ताद जी के बड़प्पन और सदाशयता के हाथों बिक गये। सही मौका लग रहा है कि साल भी खत्म हो रहा है तो एक अधूरा चैप्टर भी खत्म कर दिया जाये।
ओ दुस्मन, कहानी ही है-तुम्हारी कसम।
ओ दुस्मन, कहानी ही है-तुम्हारी कसम।
संयोग ऐसे बने कि तीन पोस्ट बहुत जल्दी-जल्दी आ गये, बैंक वालों की एक बार में एक से ज्यादा छुट्टी होनी ही नहीं चाहिये, दुआ करो सब मिलके और इस कहानी को पढ़ने के बाद एक बार लेखन शैली पर हँसना जरूर है सब ने, नहीं तो पुराने पीपल वाली चुडैल……..:)
फ़त्तू फ़ैमिली बोनांजा, माल मालिकों का और मशहूरी कंपनी की:)
सभी मित्रों को, उनके मित्रों को, परिवार को नववर्ष की शुभकामनायें।